वहा तक तो साथ चल जहा तक मुमकीन है।
जहा हालात बदल जाये तुम भी बदल जाना
जख्मो को हरा रखना अच्छा लगता है
यही तो सबूत बाकि हैं तेरी मुहोब्बत के
उसे मेरी शायरी पसंद आई क्यों की इनमे दर्द था
न जाने क्यों मै पसंद नहीं आया मुझमे उससे ज्यादा दर्द था
अब इस से भी बढ़कर गुनाह ए आशिकी क्या होगा
जब रिहाई का वक्त आया तो पिंजरे से मोहब्बत हो चुकी थी
यारों से गले मिलती हो बाहों का हार बनकर
आ जाओ हमसे मिलने कांटों का हार बनकर
एक ख़त कमीज़ में उसके नाम का क्या रखा
क़रीब से गुज़रा हर शख़्श पूछता है कौन सा इत्र है जनाब
किसी ने कहा है एक तरफ़ा प्यार कभी ख़त्म नहीं होता
पर किसी ने भी ये नहीं कहा एक तरफ़ा प्यार कभी पूरा नहीं होता
अब इस से भी बढ़कर गुनाह-ए-आशिकी क्या होगा
जब रिहाई का वक्त आया तो पिंजरे से मोहब्बत हो चुकी थी
तुम्हारी शर्तो से शहेनशाह बनने से बहेतेर है
की अपनी शर्तो पे फ़क़ीर बन जाऊ
Mile to hazaaro log the zindagi me
Par wo sabse alag tha jo kismat me nahi tha
कुछ तो रहम कर ऐ संग दिल सनम
इतना तड़पना तो लकीरो में भी न था
आज तेरी गलियो से गुजरी है मय्यत मेरी
देख मरने के बाद भी हमने रास्ता नही बदला
फिर मोहब्बत करनी है मुझसे तो शुरुवात वहीँ से कर
जिस जगह से तूने मुझे बड़ी नफरत से देखा था
काश वो भी बेचैन होकर कह दे मेँ भी तन्हा हूँ
तेरे बिन तेरी तरह तेरी कसम तेरे लिए
अपनों से अच्छा तो गम है..
साथ ही नहीं छोड़ता
बड़ी शिद्द्त से राजी हुए है वो साथ चलने को ...
खुदा करे के मुझे सारी जिंदगी मंजिल न मिले....
जीवन को केवल पीछे देखकर समझा जा सकता है
लेकिन इसे आगे की तरफ जीना चाहिए
रात भर चलती रहती है उँगलियाँ मोबाइल पर
किताब सीने पे रखकर सोये हुए एक जमाना हो गया
er kasz
जरूरी नहीं जो शायरी करे उसे इश्क हो
ज़िन्दगी भी कुछ ज़ख्म बे-मिसाल देती है
बरबाद कर देती है मोहब्बत हर मोहब्बत करने वाले को,
क्यूकि इश्क़ हार नही मानता और दिल बात नही मानता....